ता वृ॒धन्ता॒वनु॒ द्यून्मर्ता॑य दे॒वाव॒दभा॑। अर्ह॑न्ता चित्पु॒रो द॒धेंऽशे॑व दे॒वावर्व॑ते ॥५॥
tā vṛdhantāv anu dyūn martāya devāv adabhā | arhantā cit puro dadhe ṁśeva devāv arvate ||
ता। वृ॒धन्तौ॑। अनु॑। द्यून्। मर्ता॑य। दे॒वौ। अ॒दभा॑। अर्ह॑न्ता। चि॒त्। पु॒रः। द॒धे॒। अंशा॑ऽइव। दे॒वौ। अर्व॑ते ॥५॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
हे मनुष्या ! यावंशेव सत्कर्त्तव्यौ मर्त्तायाऽनु द्यून् वृधन्तावदभाऽर्हन्ता देवावहं पुरो दधे यौ देवौ चिदर्वते वर्त्तेते ता यूयं सत्कुरुत ॥५॥